वैन (दिल्ली ब्यूरो - 21.09.2021) :: हिन्दू धर्म में ईश्वर प्राप्ति हेतु ‘देवऋण’, ‘ऋषिऋण’, ‘पितृऋण’ और ‘समाजऋण’ ऐसे चार प्रकार के ऋण चुकाने के लिए बताया गया है । इनमें से ‘पितृऋण’ चुकाने के लिए पितरों की मुक्ति हेतु प्रयास करना आवश्यक है। पितरों की मुक्ति हेतु ‘श्राद्ध’ करना महत्त्वपूर्ण है। जिन्हें संभव है, वे पितृपक्ष में पुरोहितों को बुलाकर श्राद्ध विधि करें; परंतु कोरोना के कारण पुरोहित अथवा श्राद्ध सामग्री के अभाव में जिन लोगो के लिए श्राद्ध करना संभव न हो, वे आपद्धर्म के रूप में संकल्पपूर्वक आम श्राद्ध, हिरण्य श्राद्ध अथवा गोग्रास अर्पण करें। साथ ही पूूर्वजों को आगे की गति प्राप्त होने हेतु और अतृप्त पूर्वजों से कष्ट न हो, इसलिए नियमित रूप से साधना करें। श्राद्ध विधि के साथ ही पितृपक्ष में अधिकाधिक समय, साथ ही अन्य समय प्रतिदिन कम से कम 1 से 2 घंटे ‘श्री गुरुदेव दत्त’ यह नामजप सभी को करना चाहिए, ऐसा मार्गदर्शन हिन्दू जनजागृति समिति के धर्म प्रसारक संत पू. नीलेश सिंगबाळ जी ने किया। गणेशोत्सव के उपरांत आरंभ हो रहे पितृपक्ष के निमित्त सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति के संयुक्त तत्त्वाधान में आयोजित ‘पितृपक्ष एवं श्राद्ध विधि : शंका और समाधान’ इस विषय पर आयोजित विशेष संवाद में वे बोल रहे थे।
उन्होंने आगे कहा कि हिंदुओं में धर्म शिक्षा का अभाव, पश्चिमी अंधानुकरण और हिन्दू धर्म को तुच्छ मानने की प्रथा के कारण अनेक बार श्राद्ध विधि की अनदेखी की जाती है; परंतु आज भी अनेक पश्चिमी देशों के हजारों लोग भारत के तीर्थ क्षेत्रों में आकर पूर्वजों को आगे की गति प्राप्त होने हेतु श्रद्धा से श्राद्ध विधि करते हैं । प्रथम श्राद्ध विधि ‘मनु’ ने की थी । ‘राजा भगीरथ’ ने पूर्वजों की मुक्ति हेतु कठोर तपस्या की थी । त्रेतायुग में प्रभु श्री रामचंद्र के काल से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज के काल तक श्राद्ध विधि का उल्लेख प्राप्त होता है । इसलिए तथाकथित आधुनिकतावादियों द्वारा श्राद्ध के विषय में किए गए किसी भी दुष्प्रचार में न फंसें । कोरोना महामारी के काल में अपनी क्षमतानुसार पितृ ऋण चुकाने के लिए श्रद्धापूर्वक ‘श्राद्धविधि’ करें, ऐसा पू. नीलेश सिंगबाळ जी ने बताया।
श्राद्ध विधि करने से वंश वृद्धि होती है तथा न करने पर पूर्वजों का कष्ट निर्माण होकर वंश हानि होती है । पितृपक्ष में महालय श्राद्ध भावपूर्ण करने से यश, धन, संतान, कीर्ति प्राप्त होती है । श्राद्ध न करने पर हमारे पूर्वज अतृप्त रहने से दोष निर्माण होता है । श्राद्ध विधि के कारण पूर्वजों को मर्त्य लोक से आगे जाने के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है । मृत्यु के उपरांत भी सद्गति हेतु श्राद्ध विधि बताने वाला हिन्दू धर्म एकमेवाद्वितीय है । वर्तमान में समाज में धर्म शिक्षा के अभाववश ‘श्राद्ध करने के स्थान पर सामाजिक संस्था अथवा अनाथालयों को दान दें’, ऐसी भ्रामक संकल्पना का प्रचार किया जाता है; परंतु ऐसा करना अनुचित है। धार्मिक कृति धर्मशास्त्रानुसार करना ही आवश्यक है। तदनुसार कृति करने पर ही पितृऋण से मुक्त हो सकते हैं, ऐसा भी पू. नीलेश सिंगबाळ जी ने बताया।
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