दुनिया को अलविदा कहने के साथ सुपुर्द-ए-खाक हो गया मिल्खा सिंह का सपना

~ अधूरे सपने के साथ अलविदा जिंदगी - मिल्खा सिंह चाहते थे उनके जीते जी कोई एथलीट ओलंपिक में जीते पदक

~ मिल्खा सिंह को टोक्यो ओलंपिक में एथलीट हिमा दास से खासी उम्मीदें थीं। इस बाबत उन्होंने उन्हें तैयारी के टिप्स भी दिए थे।

वैन (स्पोर्ट्स डेस्क - 19.06.2021) :: 'फ्लाइंग सिख' के नाम से मशहूर महान धावक मिल्खा सिंह नहीं रहे. भारत के महान फर्राटा धावक मिल्खा सिंह का एक महीने तक कोरोना संक्रमण से जूझने के बाद शुक्रवार को निधन हो गया. मिल्खा ने भारत के लिए कई पदक जीते, लेकिन 1960 के रोम ओलंपिक में उनके पदक से चूकने की कहानी हमेशा लोगों के जेहन में रहेंगी. मिल्खा भी रोम ओलंपिक में जीत की पक्की उम्मीद के साथ गए थे, क्योंकि 1958 के एशियाई और‌ राष्ट्रमंडल खेलों में कुल तीन स्वर्ण पदक जीतकर वह आत्मविश्वास से लबरेज थे. कार्डिफ राष्ट्रमंडल खेलों में मिल्खा ने तो तत्कालीन विश्व रिकॉर्ड होल्डर मेल स्पेंस को मात दे दी थीl

मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में सब कुछ हासिल किया, लेकिन उनका एक सपना अधूरा रह गया और वह इस अधूरे सपने के साथ जिंदगी को अलविदा कर गए। उड़न सिख पद्मश्री मिल्खा सिंह अक्सर कहते थे कि रोम ओलंपिक जाने से पहले उन्होंने दुनिया भर में कम से कम 80 दौड़ों में हिस्सा लिया था, इनमें उन्होंने 77 दौड़ें जीतीं थी, जो एक रिकार्ड बन गया था।

वह बताते थे कि सारी दुनिया ये उम्मीदें लगा रही थी कि रोम ओलंपिक में 400 मीटर की दौड़ मिल्खा ही जीतेगा। मैं अपनी गलती की वजह से पदक नहीं जीत सका। मैं इतने वर्षो से इंतजार कर रहा हूं कि कोई दूसरा भारतीय वह कारनामा कर दिखाए, जिसे करते-करते मैं चूक गया था, लेकिन कोई एथलीट ओलंपिक में पदक नहीं जीत पाया।

मिल्खा सिंह कहते थे कि अगर रोम ओलंपिक में पदक जीत जाता तो आज देश में जमैका की तरह हर घर से एथलीट निकलते। मैं रोम में पदक जीतने से नहीं चूका, बल्कि मैं इस देश को रोल माडल और सपने देने से चूक गया था। पीटी ऊषा और श्रीराम सिंह जैसे एथलीट भी पदक जीतने से चूक गए, जिनसे देश को खासी उम्मीदें थीं। अगर हम पदक जीत गए होते तो एथलेटिक्स गेम्स के प्रति भी युवाओं में वो ही आकर्षण होता जो ध्यानचंद के समय हाकी का और वर्ष 1983 में क्रिकेट विश्व कप जीतने के बाद क्रिकेट का था। मैं इतने वर्षो से इंतजार कर रहा, लेकिन मेरा इंतजार खत्म नहीं हुआ।

मिल्खा सिंह अक्सर हर मंच से यह शिकायत करते थे कि क्रिकेट सिर्फ 10 से 14 देश खेलते हैं, बावजूद इसके उसे मीडिया की तरफ से ज्यादा कवरेज दी जाती है, लेकिन एथलेटिक्स गेम्स 200 से ज्यादा देश खेलते हैं, उस लिहाज से एथलेटिक्स गेम्स को तव्वजो नहीं दी जाती है। इसलिए एथलेटिक्स में महत्व को हमें समझना होगा। मिल्खा सिंह को टोक्यो ओलंपिक में एथलीट हिमा दास से खासी उम्मीदें थीं। इस बाबत उन्होंने उन्हें तैयारी के टिप्स भी दिए थे।

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