धर्मनगरी मथुरा में "गैया ले गए गैया चोर", सोता रहा पुलिस-प्रशासन

- "गैया ले गये गैया चोर", पुलिस-प्रशासन नींद की ओर

वैन (राज ठाकुर राजावत - मथुरा, उत्तर प्रदेश) :: धार्मिक नगरी वृन्दावन इन दिनों गौ तस्करों के आतंक के चलते खासी चर्चा में है। बीती रात का वीडियो गौ तस्करी की घटनाओं पर मुहर लगाने के लिए पर्याप्त है। ऐसा नहीं है कि ये घटना कभी विरले ही होती हो। वृन्दावन में आये दिन का खेल है यह गौ तस्करी। इनके वाहनों के वेग और हौंसले के आगे पुलिस के वाहन भी नतमस्तक दिखाई देते हैं।

बतौर ताज़ा उदाहरण बीती रात 1 से 1:30 बजे की घटना का वीडियो है। वृंदावन में चेतन विहार फ्लाईओवर के नीचे लोडर पिकअप में गायों को ज़बरदस्ती भरते हुए यह तस्कर अलग ही दिख रहे हैं। पुलिस प्रशासन की नाईट-पेट्रोलिंग सही होती तो गौतस्करों को अपने मंसूबों में कभी सफलता नही मिलती और बेजुबान गौधन पशुओं को लेजाने में सफल भी नहीं होते। सवाल बड़ा है कि अभी तो सर्दियों की शुरुआत है आगे जब सर्दी तेज़ होगी और कोहरा बढ़ेगा तो वृन्दावन-वासी कैसे सुरक्षित रहेंगे? जिस वृन्दावन के लिए भक्त दूर-दराज से दर्शन हेतु आते हैं क्या वह खुद सुरक्षित महसूस कर पाएंगे? जहां एक तरफ भारत के राष्ट्रपति आने वाले हैं वहीं प्रशासन की प्रक्रिया फेल साबित हो रही हैं। जब पशुओं का अपहरण नही रोक सकते तो इंसानों की मौत और गायब होने पर क्या अंकुश लगा पायेंगे प्रशासनिक और पुलिसिया अधिकारी? वृन्दावन पुलिस जब गौधन की सुरक्षा करने में असफल है तो गौरक्षकों को सहारा क्यों नहीं बनाती या उनका सहारा क्यों नहीं बन जाती? अपितु इसके विपरीत पुलिस गौरक्षकों को मौका मिलते ही झूंठे मामलों में फ़साने का काम करती है।

इस वीडियो को देखने के बाद आप क्या अनुमान लगाएंगे? आपको नहीं लगता कि अगर पुलिस की पेट्रोलिंग मुस्तैद हो तो इन घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है? दबे सुर से एक बात और भी सामने आती है कि गौ तस्कर फायरिंग करने में भी माहिर होते हैं। ज़रा भी शक होने पर ईंट-पत्थरों से प्रहार करने के साथ-साथ गोलियां दागना भी इनके लिए आम बात है। वैसे हमने और आपने एक कहावत तो सुनी ही होगी कि "पुलिस के भय से तो भूत भी भाग जाता है", आखिर यह तो गो-तस्करों का मामला है साहेब।

दूसरी तरफ आप देख सकते हैं कि जहां प्रशासन और शासन गायों को रख-रखाव की बात कर रहा है वहीं बीच सड़क पर लड़ रहे यह गोवंश खुद को तो नुकसान पहुंचा ही रहे हैं साथ ही आने-जाने वालों के लिये भी खतरे की घंटी हैं।

गाहे-बगाहे बात सिर्फ और सिर्फ सुरक्षा की है फिर चाहे नागरिकों की हो या पशुओं की। यहां दोनों ही हैं क्योंकि मामला धर्मनगरी का है जहां शासन और प्रशासन नित-नये फॉर्मूले अप्लाई करता नज़र आता है लेकिन अमलीजामा शायद ही किसी को पहनाया जाता हो, सब भविष्य के गर्भ में है।

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