तामिलनाडु की स्टालीन सरकार को हिन्दू मंदिर परंपरा में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं - अधिवक्ता

दिल्ली ब्यूरो (18.06.2021) :: भारत के इतिहास में राजा-महाराजा स्वयं के नियंत्रण में रखकर मंदिर नहीं चलाते थे अपितु वे मंदिरों के लिए भूमि और धन दान देते थे । उस काल में मंदिरों का व्यवस्थापन श्रद्धालु ही देखते थे; परन्तु भारत की स्वतंत्रता के उपरांत मंदिरों की धन-संपत्ति देखकर ‘सेक्युलर’ सरकार ने मंदिर नियंत्रण में लेने का अनाचार किया है । वास्तव में उन्हें हिन्दुओं के मंदिर नियंत्रण में लेने का और उनकी परंपराओं में परिवर्तन करने का कोई भी अधिकार नहीं है । मंदिरों में पुजारियों की नियुक्ति धर्मशास्त्रानुसार की गई है । उसमें परिवर्तन करने का अधिकार सरकार को नहीं है । वर्ष 1972 से तमिलनाडु के मंदिरों के विषय में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनेक आदेश हिन्दुओं के पक्ष में दिए गए हैं । इसलिए यदि स्टालिन सरकार द्वारा तमिलनाडु में गैर ब्राह्मण पुजारी नियुक्त करने का निर्णय लिया गया, तो उसे न्यायालय में चुनौती दी जाएगी, ऐसा स्पष्ट प्रतिपादन मद्रास उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सीताराम कलिंगा ने किया । वे हिन्दू जनजागृति समिति आयोजित ‘तामिलनाडु सरकार का मंदिर परंपरा में हस्तक्षेप क्यों’ इस विशेष संवाद में बोल रहे थे । इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण समिति के जालस्थल Hindujagruti.org, यु-ट्यूब और ट्विटर द्वारा 2,663 लोगों ने देखा ।

तमिलनाडु के ‘हिन्दू मक्कल कच्छी’ के श्री. अर्जुन संपथ ने कहा कि, तमिलनाडु में चर्च का कार्य ईसाई चलाते हैं । मुसलमानों के मदरसों-मस्जिदों के लिए वक्फ बोर्ड है । उनके कार्य में तमिलनाडु की ‘सेक्युलर’ सरकार हस्तक्षेप नहीं करती; परंतु हिन्दुओं के मंदिरों का व्यवस्थापन सेक्युलर सरकार कर रही है । मंदिरों में बडी संख्या में उन्होंने भ्रष्टाचार किया है । मंदिरों की 47,000 एकड भूमि हडप ली गई हैं । 40 हजार से अधिक मंदिर सरकार के नियंत्रण में हैं । देवता-धर्म न माननेवाली ऐसी हिन्दू विरोधी सरकार द्वारा गैर ब्राह्मणों को पुजारी नियुक्त करना पूर्णत: अवैधानिक (गैरकानूनी) है । मंदिर परंपरा में हस्तक्षेप कर स्टालिन सरकार मंदिर संस्कृति को नष्ट कर रही हैं । यह हिन्दुओं के मंदिरों पर आक्रमण है, जिसका तमिलनाडु की जनता तीव्र विरोध करेगी ।

हिन्दू जनजागृति समिति के कर्नाटक राज्य प्रवक्ता श्री. मोहन गौडा ने कहा की, धर्मपरंपरा से संबंधित निर्णय धर्मशास्त्र के अभ्यासक, विशेषज्ञ, संत-महंत द्वारा लिया जाना चाहिए; परंतु धर्मनिरपेक्ष सरकार का इसमें हस्तक्षेप अनुचित है । ‘मंदिर चलाना सेक्युलर सरकार का काम न हो कर, मंदिर भक्तों के नियंत्रण में होना चाहिए’, ऐसा निर्णय वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया है । उसके अनुसार सरकारीकरण किए गए देश के लगभग 4 लाख से अधिक मंदिर सरकार के नियंत्रण से मुक्त हो तथा यह मंदिर ‘धर्मशिक्षा’ के केंद्र बनें । इसके लिए सभी मंदिर के न्यासी, पुजारी, हिन्दू संगठन, अधिवक्ता सहित संपूर्ण हिन्दू समाज को संगठित होना चाहिए । इस हेतु हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आरंभ किए गए ‘राष्ट्रीय मंदिर रक्षा अभियान’ में सभी अपना सहयोग दें।

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