मथुरा (जगदीश गोकुलिया - गोवर्धन - 12.01.2022) :: इतिहास से ब्राह्मण रेजिमेंट का अस्तित्व लगभग समाप्ति की ओर अग्रसर है, बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि कभी सेना में ब्राह्मण रेजिमेंट भी हुआ करता था। चाहे सन 1857 के सिपाही विद्रोह में ब्राह्मण रेजिमेंट ने अंग्रेजो के खिलाफ हथियारबंद विद्रोह कर दिया हो जिससे इस विद्रोह ने ब्रिटिश सरकार की कमर तोड़ दी थी, चाहे सन 1942 द्वितीय विश्व युद्ध का बहिष्कार में ब्राह्मण रेजिमेंट ने आजादी की मांग करते हुए द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजो की तरफ से लड़ने से इंकार कर दिया हो चाहे सन 1857 में ब्राह्मण क्रांतिकारियों के विद्रोह में मंगल पांडे का विद्रोह, नाना साहिब की सेना का लखनऊ और कानपुर की रियासत पर कब्जा, रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे जैसे ब्राह्मण राजाओं के विद्रोह से अंग्रेजों को भारी नुकसान हुआ था। प्राप्त सूत्रों के अनुसार अंग्रेजों के समय में भारतीय सेना में ब्राह्मणों की दो रेजिमेंट हुआ करती थीं। एक थीं 1st ब्राह्मण रेजिमेंट और दूसरी थी बंगाल रेजिमेंट जो सिर्फ नाम की ही बंगाल की थी क्योंकि इसमें 90% संख्या बिहार और पूर्वांचल के ब्राह्मणों की थी। सन 1776 में कप्तान टी नैलोर द्वारा बंगाल नेटिव इन्फेंट्री बटालियन के नाम से ब्राह्मण रेजिमेंट की स्थापना की गई थी। 1st ब्राम्हण रेजिमेंट ब्रिटिश आर्मी की इन्फेंट्री विंग से संबंधित थी। सेना में ब्राह्मण रेजिमेंट अपने युद्ध कौशल के लिए जानी जाती थी। पर 1st ब्राह्मण रेजीमेंट को अंग्रेजों द्वारा बंद कर दिया गया था। ब्राह्मण रेजिमेंट और ब्राह्मण राजाओं की बार-बार विद्रोह से अंग्रेज यह समझ चुके थे कि अगर ब्राह्मण सेना में रहे तो बार-बार विद्रोह करेंगे। इसलिए अंग्रेजों का ब्राम्हण रेजिमेंट से भरोसा उठ चुका था। यही वजहें थी कि अंग्रेजों द्वारा भारतीय सेना से 1st ब्राम्हण रेजीमेंट को बंद कर दिया गया था। एक ओर जहां 1st ब्राह्मण रेजिमेंट को बंद कर दिया गया तो वहीं दूसरी ओर बंगाल रेजिमेंट में भी बिहार और पूर्वांचल के ब्राह्मणों के भर्ती पर रोक लगा दी गई। बंगाल रेजिमेंट में सिर्फ यादव और मुसलमानों की भर्ती की गई। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत के आजाद होने के बाद भी भारतीय सरकार ने सेना में अंग्रेजों के उसी प्रारूप को जारी रखा। आश्चर्य की बात है कि ना तो किसी नेता का और ना ही सरकार का भारतीय सेना में इस सुधार की ओर ध्यान गया। और इसी तरह एक समय अंग्रेजों के लिए खौफ का दूसरा नाम रही ब्राह्मण रेजिमेंट कहीं ना कहीं गुमनाम हो गई। इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज के युवा वर्ग को शायद ही सेना में ब्राह्मण रेजिमेंट के बारे में पता हो। ब्राह्मण समाज की मांग है कि सेना में एक बार फिर से ब्राह्मण रेजिमेंट को शामिल किया जाए और ब्राह्मणों को उनके गौरवशाली और वीरता पूर्ण इतिहास का श्रेय दिया जाए। परन्तु हिंदुत्व वादी सरकार का इस ओर अभी कोई ध्यान नजर नहीं आता, क्योंकि पांच राज्यों में चुनाव का बिगुल बज चुका है। हिंदुत्व का बिगुल बजाने वाली सत्ताधारी पार्टी को इस ओर ध्यान देना चाहिए, जिससे ब्राह्मण वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित किया जा सके। केन्द्र की वर्तमान सरकार ने भारत की सीमाओं को जिस प्रकार नए नए हथियार और आधुनिक मिशाइल देकर मजबूती प्रदान की है काबिले तारीफ़ है।
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