‘कोरोना’ महामारी की पार्श्‍वभूमि पर शास्त्रोक्त पद्धति से पितृपक्ष में महालय श्राद्ध विधि कैसे करें ?

दिल्ली ब्यूरो (20.09.2021) :: ‘भाद्रपद कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से भाद्रपद अमावस्या (विक्रम संवत के अनुसार शुद्ध अश्‍विन अमावस्या) (21 सितंबर से 6 अक्टूबर 2021) की अवधि में पितृ पक्ष है । ‘सभी पूर्वज संतुष्ट हों और साधना के लिए उनके आशीर्वाद मिलें’, इस हेतु हिन्दू धर्मशास्त्र में पितृपक्ष में सभी को महालय श्राद्ध करने को कहा गया है।

पितृपक्ष में महालय श्राद्ध विधि करने का महत्त्व ! : पितृपक्ष के काल में कुल के सभी पूर्वज अन्न एवं जल (पानी) की अपेक्षा लेकर अपने वंशजों के पास आते हैं । पितृ पक्ष में पितृ लोक के पृथ्वी लोक के सर्वाधिक निकट आने से इस काल में पूर्वजों को समर्पित अन्न, जल और पिंडदान उन तक शीघ्र पहुंचता है । उससे वे संतुष्ट होकर आशीर्वाद देते हैं । श्राद्ध विधि करने से पितृ दोष के कारण साधना में आने वाली बाधाएं दूर होकर साधना में सहायता मिलती है । ऐसा है, परंतु वर्तमान में श्राद्ध विधि कैसे करें, यह यक्ष प्रश्‍न लोगों के समक्ष है । उसी संदर्भ में यह लेख प्रपंच !

‘कोरोना’ महामारी की पार्श्‍वभूमि पर पितृपक्ष में शास्त्रोक्त महालय श्राद्ध विधि करना संभव न हो तो क्या करें ? वर्तमान में कोरोना के कारण विविध त्योहार, उत्सव और व्रत सदा की भांति सामूहिक रूप से करने पर प्रतिबंध लगाए हैं । कोरोना जैसी आपातकाल की पार्श्‍वभूमि पर हिन्दू धर्म ने धर्माचरण में कुछ विकल्प बताए हैं । इसे ‘आपद्धर्म’ कहते हैं । ‘आपद्धर्म’ अर्थात ‘आपदि कर्तव्यो धर्मः ।’ अर्थात ‘आपातकाल में धर्मशास्त्र को मान्य कृति।’

इस काल में ही ‘पितृपक्ष’ आने से संपत काल में बताए अनुसार उसे करने में कुछ मर्यादा आ सकती हैं । ऐसी स्थिति में ‘श्राद्ध करने के संदर्भ में शास्त्र विधान क्या है ?’, यह आगे दिया है । यहां महत्त्वपूर्ण यह है कि ‘हिन्दू धर्म ने किस स्तर तक जाकर मानव का विचार किया है ?’, यह इससे सीखने को मिलता है । इससे हिन्दू धर्म का एकमेवाद्वितीयत्व अधोरेखित होता है।

1. आम श्राद्ध करना : ‘संकटकाल में, भार्या के अभाव में, तीर्थस्थान पर और संक्रांति के दिन आम श्राद्ध करना चाहिए’, यह कात्यायन का वचन है । कुछ कारणवश पूरी श्राद्ध विधि करना संभव न हो, तो संकल्पपूर्वक ‘आमश्राद्ध’ करना चाहिए । अपनी क्षमता के अनुसार अनाज, चावल, तेल, घी, चीनी, अदरक, नारियल, 1 सुपारी, 2 बीडे के पत्ते, 1 सिक्का आदि सामग्री बर्तन में रखें । ‘आमान्नस्थित श्री महाविष्णवे नमः ।’ नाम मंत्र बोलते हुए उसपर गंध, अक्षत, फूल और तुलसी का पत्ता एकत्रित समर्पित करें । यह सामग्री किसी पुरोहित को दें । पुरोहित उपलब्ध न हो, तो वेद पाठशाला, गोशाला अथवा देवस्थान में उसका दान दें ।

2. ‘हिरण्य श्राद्ध’ करना : उक्त प्रकार से करना भी संभव नहीं हुआ, तो संकल्पपूर्वक ‘हिरण्य श्राद्ध’ करना चाहिए अर्थात अपनी क्षमता के अनुसार एक बरतन में व्यावहारिक द्रव्य (पैसे) रखें । ‘हिरण्यस्थित श्री महाविष्णवे नमः ।’ अथवा ‘द्रव्यस्थित श्री महाविष्णवे नमः ।’ बोल कर उस पर एकत्रित गंध, अक्षत, फूल और तुलसी का पत्ता समर्पित करें और उसके पश्‍चात उस धन को पुरोहित को अर्पण करें । पुरोहित उपलब्ध न हो, तो वेद पाठशाला, गोशाला अथवा देवस्थान को दान दें ।

3. गो ग्रास देना : जिनके लिए आम श्राद्ध करना संभव नहीं है, वे गो ग्रास दें । जहां गोग्रास देना संभव न हो, वे निकट की गौशाला से संपर्क कर गोशाला में गो ग्रास हेतु कुछ पैसे अर्पण करें ।

उक्त में से आम श्राद्ध, हिरण्यश्राद्ध अथवा गो ग्रास समर्पित करने के उपरांत तिल अर्पित करें । पंचपात्र (तांबे का गिलास) में पानी लें । उसमें थोडे से काले तिल डालें । इससे तिलोदक बनता है । तिलोदक बनने पर मृत पूर्वजों के नाम लेकर दाहिने हाथ का अंगूठा और तर्जनी के मध्य से उन्हें तिलोदक समर्पित करें । दिवंगत व्यक्ति का नाम ज्ञात न हो; परंतु वह व्यक्ति ज्ञात हो, तो उस व्यक्ति का स्मरण कर तिलोदक समर्पित करें । अन्य समय इन सभी विधियों के समय पुरोहित मंत्रोच्चारण करते हैं और उसके अनुसार हम उपचार करते हैं । पुरोहित उपलब्ध हों, तो उन्हें बुलाकर उक्त पद्धति से विधि करें और पुरोहित उपलब्ध न हों, तो इस लेख में दी गई जानकारी के अनुसार भाव रखकर विधि करें।

किसी को कोई भी विधि करना संभव न हो, तो वे न्यूनतम तिलतर्पण करें ।

4. जिन्हें उक्त में से कुछ भी करना संभव न हो, तो वे धर्मकार्य के प्रति समर्पित किसी आध्यात्मिक संस्था को अर्पण दें ।

श्राद्ध विधि करते समय करनी आवश्यक प्रार्थना ! : श्री दत्त जी के चरणों में यह प्रार्थना करें कि, ‘शास्त्रमार्ग के अनुसार प्राप्त परिस्थिति में आम श्राद्ध, हिरण्य श्राद्ध अथवा तर्पण विधि (उक्त में से जो किया जा रहा है, उसका उल्लेख करें) किया है । इसके द्वारा पूर्वजों को अन्न और जल मिलें । इस दान से सभी पूर्वज संतुष्ट हों । हम पर उनकी कृपा दृष्टि बनी रहे । हमारी आध्यात्मिक उन्नति हेतु उनके आशीर्वाद प्राप्त हों । श्री दत्त जी की कृपा से उन्हें सद्गति प्राप्त हो ।’

‘कोरोना’ काल में जहां स्थिति सामान्य है वहा पर विधिपूर्वक पिंडदान कर श्राद्ध करें ।’

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