तुलसी विवाह मनाने की पद्धति और विशेषताएं

वैन (कु. कृतिका खत्री - दिल्ली - 03.11.2022) :: इस वर्ष तुलसी विवाह की कार्तिक शुक्ल द्वादशी (5 नवंबर) से कार्तिक पूर्णिमा (8 नवंबर) तक है। इस दिन से शुभ दिवस का अर्थात मुहूर्त के दिनों का आरंभ होता है। ऐसा माना जाता है कि, ‘यह विवाह भारतीय संस्कृति का आदर्श दर्शाने वाला विवाह है।’ इस पूजन से पूर्व घर के आंगन में गोबर-मिश्रित पानी छींटा जाता है। तुलसी कुंड को श्वेत रंग से रंगना चाहिए। श्वेत रंग के माध्यम से ईश्वर की ओर से शक्ति आकर्षित की जाती है। तुलसी के आस-पास सात्त्विक रंगोली बनाई जाती है तथा उसकी जड़ों पर इमली और आंवला रखा जाता है। यह विवाह शाम को किया जाता है। उसके उपरांत उसकी भावपूर्ण पूजा की जाती है। पूजा करते समय पश्चिम की ओर मुख कर बैठना चाहिए।

इस दिन पृथ्वी पर अधिक मात्रा में श्रीकृष्ण तत्त्व कार्यरत रहता है । तुलसी के पौधे से भी अधिक मात्रा में श्रीकृष्ण तत्त्व कार्यरत होता है। इसलिए इस दिन श्रीकृष्ण का नामजप करने से अधिक लाभ होता है। पूजा होने के उपरांत वातावरण अत्यंत सात्त्विक हो जाता है। उस समय भी श्रीकृष्ण का नामजप करना चाहिए। तुलसी अत्यधिक सात्त्विक होती है अत: उसमें ईश्वर की शक्ति अधिक मात्रा में आकर्षित होती है। तुलसी के पत्ते जल में डालने से जल शुद्ध एवं सात्त्विक होता है और उसमें ईश्वरीय शक्ति कार्यरत होती है। उस जल से जीव की प्रत्येक पेशी में ईश्वरीय शक्ति कार्यरत होती है।

तुलसी विवाह के बाद चातुर्मास में लिए गए सभी व्रतों की समाप्ति करते है। चातुर्मास में वर्जित भोजन ब्राह्मणों को दान दिया जाता है और फिर स्वयं सेवन किया जाता है। एक संकेत है कि हर हिन्दू के घर में तुलसी होनी चाहिए। ऐसा कहा गया है कि, "सभी को सुबह और शाम तुलसी के दर्शन करने चाहिए।" इस तुलसी दर्शन का मंत्र इस प्रकार है।

तुलसी श्रीसखी शुभे पापहरिणी पुण्यदे।
नमस्ते नारदनुते नारायणमन: प्रिये। - तुलसीस्तोत्रा, श्लोक 15

अर्थ: हे तुलसी, आप लक्ष्मी की मित्र शुभदा, पापहरिणी और पुण्यदा हैं। नारद जी ने जिनकी प्रशंसा की है, जो नारायण को प्रिय है, ऐसे आपको मैं नमस्कार करता हूं।

तुलसी के आध्यात्मिक विशेषताएं -

पापनाशक :
तुलसी के दर्शन, स्पर्श, ध्यान, प्रणाम, पूजा, रोपण और सेवन से युगोयुगों के पापों का नाश होता है।
पवित्रता : तुलसी के बगीचे के चारों ओर की पूरी भूमि गंगा के समान पवित्र हो जाती है। इस संदर्भ में स्कंद पुराण (वैष्णव खंड, अध्याय 8, श्लोक 13) में कहा गया है।

तुलसीकाननं चैव गृहे यस्यवतिष्ठते।
तद गृहं तीर्थभूतं हि नायान्ति यमकिंड्करा:।।
अर्थ: जिस घर में तुलसी का बगीचा हो वह तीर्थ के समान पवित्र होता है। उस घर में यमदूत नहीं आते। 'तुलसी के पौधे में जड़ से लेकर सिरे तक सभी देवता निवास करते हैं', ऐसा कहा गया है।

भगवान को भोग अर्पित करने के लिए तुलसी के पत्तों का उपयोग क्यों करें? - तुलसी वातावरण से सात्त्विकता को आकर्षित करने और उसे प्रभावी ढंग से जीव तक पहुँचाने में अग्रणी है। तुलसी में ब्रह्मांड के कृष्ण तत्व को खींचने की क्षमता अधिक है। देवता को प्रसाद चढ़ाते समय तुलसी के पत्तों का उपयोग करने से, प्रसाद शीघ्रता से देवता तक पहुंचना, सात्विक बनना संभव है।

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