श्री दुर्गा सप्तशती पाठ एवं हवन करने की विधि

वैन (दिल्ली ब्यूरो) :: नवरात्रि की कालावधि में देवीपूजन के साथ उपासनास्वरूप देवी के स्तोत्र, सहस्रनाम, देवीमाहात्म्य इत्यादि के यथाशक्ति पाठ और पाठसमाप्ति के दिन विशेष रूप का हवन करते हैं। श्री दुर्गाजी का एक नाम ‘चंडी’ भी है। मार्कंडेय पुराण में इसी देवीचंडी का माहात्म्य बताया है। उसमें देवी के विविध रूपों एवं पराक्रमों का विस्तार का वर्णन किया गया है। इसमें का सात सौ श्लोक एकत्रित कर देवी उपासना के लिए `श्री दुर्गा सप्तशती’ नामक ग्रंथ बनाया गया है। सुख, लाभ, जय इत्यादि कामनाओं की पूर्ति के लिए सप्तशतीपाठ करने का महत्त्व बताया गया है।

शारदीय नवरात्रि में यह पाठ विशेष रूप का करते हैं। कुछ घरों में पाठ करने की कुलपरंपरा ही है। पाठ करने के उपरांत हवन भी किया जाता है। इस पूरे विधान को `चंडीविधान’ कहते हैं। संख्या के अनुसार नवचंडी, शतचंडी, सहस्रचंडी, लक्षचंडी ऐसे चंडीविधान बताए गए हैं। प्राय: लोग नवरात्रि के नौ दिनों में प्रतिदिन एक-एक पाठ करते हैं।

नवरात्रि में यथाशक्ति श्री दुर्गासप्तशतीपाठ करते हैं। पाठ के उपरांत पोथीपर फूल अर्पित करते हैं। उसके उपरांत पोथी की आरती करते हैं।

श्री दुर्गासप्तशती पाठ में देवीमां के विविध रूपों को वंदन किया गया है।

पाठ करने की पद्धति

- पाठ करते समय प्रथम आचमन करते हैं।

- तदउपरांत पोथी का पूजन करते है।

- अब श्रीदुर्गासप्तशती का पठन करते हैं।

- पाठ के उपरांत पोथीपर पुष्प अर्पित करते हैं।

- उपरांत आरती करते हैं।

- श्री दुर्गासप्तशती पाठ करने के परिणाम

भावसहित पाठ करने का व्यक्ति में भाव का वलय निर्माण होता है।

कवचपठन

कवच मंत्रविद्या का एक कार है। इसमें देवताओंद्वारा हमारे शरीर की रक्षा होने हेतु प्रर्थना होती है। विविध मंत्रों की सहायता से मानवीय देह पर मंत्रकवचों की निर्मिति करना संभव है। ये कवच स्थूल कवच से अधिक शक्तिशाली होते हैं। स्थूल कवच बंदूक की गोली समान स्थूल आयुधों से रक्षा करते हैं तथा सूक्ष्म कवच स्थूल एवं सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियों से रक्षा करते हैं। दुर्गाकवच, लक्ष्मीकवच, महाकालीकवच आदि के पठन का शत्रु तथा अनिष्ट शक्तियों से रक्षण में सहायता मिलती है।

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