वैन (रामा शंकर - आरा, बिहार) :: सर्वभूतहृदय धर्मसम्राट् स्वामी करपात्री जी महाराज की जयंती के अवसर पर श्रीसनातनशक्तिपीठ संस्थानम् के तत्त्वावधान में फ्रेण्ड्स कॉलोनी कार्यालय पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्थानम् के अध्यक्ष एवं स्वामी करपात्री जी महाराज के प्रशिष्य (शिष्य के शिष्य) आचार्य डॉ. भारतभूषण पाण्डेय ने कहा कि जिस समय परतंत्र भारत में धर्म-पंथ के नाम पर समाज आपस में लड़ रहा था उस समय अखण्ड भारत समस्त आर्यावर्त में स्वामी जी ने अखिल भारतवर्षीय धर्म संघ की स्थापना की। लाहौर, कराची, मुम्बई, कलकत्ता, ढाका, दिल्ली आदि महानगरों में तथा तीर्थों, जिला केन्द्रों में उसके सम्मेलन होते थे। धर्म संघ के मंच पर जगद्गुरु शंकराचार्य, सभी वैदिक संप्रदायाचार्य, महामहोपाध्याय, विद्वान आचार्यगण सभी विराजमान रहते थे। सारे मत-मतांतरों का शास्त्रीय समाधान हो जाता था। इस प्रकार स्वामी करपात्री जी धार्मिक एकता के सबसे बड़े सूत्रधार, शास्त्रीय विद्याओं के समर्थ प्रकाशक, महान संगठक तथा स्वतंत्रता सेनानी थे। मार्क्सवाद और अन्य पाश्चात्य दर्शनों के वैचारिक-व्यावहारिक खोखलापन को उजागर कर उन्होंने "रामराज्य" का आदर्श प्रकट किया और विश्व की राजनीति को सनातन भारतीय सर्वहितप्रद शासनतंत्र की अभिव्यक्ति के लिए प्रेरित-अनुप्राणित किया। इस अवसर पर विशिष्ट वक्ता के रूप में बोलते हुए आचार्य डॉ. श्रीनिवास तिवारी 'मधुकर' ने कहा कि यज्ञों और अनेक शास्त्रीय उपासनाओं को पुनर्प्रकाशित करने, धर्मतंत्र एवं शासन को अराजकता से मुक्त करने तथा वैदिक मर्यादा की रक्षा हेतु आजीवन संघर्ष करने वाले आचार्य व महापुरुष के रूप में स्वामी जी का नाम अमर है। मदनमोहन सिंह और अखिलेश्वर नाथ तिवारी ने अखण्ड भारत एवं गोरक्षा के लिए स्वामी करपात्री जी द्वारा किए गए संघर्षों व आन्दोलनों का उल्लेख करते हुए उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन अजय कुमार पाठक, स्वागत भाषण उमेश सिंह कुशवाहा एवं धन्यवाद ज्ञापन विश्वनाथ दूबे ने किया। वक्ताओं में ध्रुव कुमार सिंह, सरोज कुमार अकेला, सुरेन्द्र मिश्र, सियाराम दूबे आदि प्रमुख थे।
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