भारतीय संस्कृति, संस्कार और शिक्षा आज के युवाओं के नवनिर्माण में अत्यंत आवश्यक: मिश्रा, अखिल भारतीय संस्कृति महोत्सव के अवसर पर संस्कृति वार्ता का आयोजन

विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा आयोजित अखिल भारतीय संस्कृति महोत्सव के अवसर पर संस्कृति वार्ता का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्यातिथि आर.सी.मिश्रा, कमिश्नर, अम्बाला रेंज थे ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। विषय प्रस्तोता हरियाणा साहित्य अकादमी की निदेशक डॉ॰ कुमुद बंसल रहीं जबकि अध्यक्षता प्रमुख शिक्षाविद् डॉ॰ प्रीतम सिंह ने की। कार्यक्रम में मंचासीन विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. गोविंद प्रसाद शर्मा, उपाध्यक्ष नरेन्द्रजीत सिंह रावल, विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी रहे। मुख्य अतिथियों का परिचय विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सचिव अवनीश भटनागर ने कराया। आभार अभिव्यक्ति संस्कृति महोत्सव के संयोजक एवं विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र ने दी। इस अवसर पर मुख्यातिथि आर.सी. मिश्रा ने कहा कि भारतीय संस्कृति, संस्कार और शिक्षा आज के युवाओं के नवनिर्माण में अत्यंत आवश्यक है। आज की भारतीय पीढ़ी को सही शिक्षा, ज्ञान, संस्कृति, संस्कार मिल जाएं तो भारत पुनः विश्वगुरु बन जाए। उन्होंने कहा कि जब तक हमें सही ज्ञान नहीं होगा, तब तक किसी चीज की सही विवेचना नहीं कर सकते और जब तक सही विवेचना नहीं होगी, तब तक अनुभव तक नहीं जा सकते। उन्होंने कहा कि संस्कृति आ जाने पर संस्कार उसके साथ स्वयं जुड़ जाते हैं। विद्या विनम्रता देती है। विद्या दुनिया के सभी धन में प्रकाश धन है। दुनिया में सब बंट जाता है, केवल विद्याधन ही एकमात्र ऐसा धन है जो कभी नहीं बंटता। इसे जितना खर्च करेंगे उतना ही बढ़ता जाएगा। श्री मिश्रा ने कहा कि माता-पिता, गुरु के चरण स्पर्श करना झुकना सिखाता है। जो जीवन में झुकना सीख जाता है, वह कभी मार नहीं खा सकता। शिक्षा केवल ज्ञान के लिए है। शिक्षा का मतलब है समग्र विकास। उन्होंने कहा कि हम धीरे-धीरे प्राचीन संस्कृति को भूलते जा रहे हैं और पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ रहे हैं। इससे जीवन में विकृति आ रही है। इस विकृति को दूर करने के लिए और आगे बढ़ने के लिए चरित्र निर्माण करना होगा जोकि केवल भारतीय संस्कृति और संस्कारों से आ सकता है। कार्यक्रम की विषय प्रस्तोता डॉ. कुमुद बंसल ने कहा कि हम सबका व्यक्ति से लेकर देश तक वैचारिक अधिष्ठान होता है। हम जब अपनी साहित्यिक सम्पदा को देखते हैं तो पता चलता है कि हमारा अधिष्ठान अध्यात्म है। उन्होंने कहा कि सत्यम, शिवम्, सुन्दरम की व्याख्या करते हुए कहा कि ये तीनों शब्द सबने सुने हैं लेकिन इस पर मनन किसने किया? अध्यात्म, जीवन पद्धति, धर्म यही हमारी संस्कृति की अवधारणा है, लेकिन अब इसमें विकृति आ रही है। आध्यात्मिक चेतना के साथ जीवन जुड़ा है, उसे लेकर आगे बढ़ना है। नरेन्द्र जीत सिंह रावल ने कहा कि मनुष्य के द्वारा की गई कृति फलदायी, सुख देने वाली, कल्याण देने वाली हो, उस संस्कृति को सबल, परिपुष्ट किया जाए इसके लिए संस्कृति शिक्षा संस्थान निरंतर प्रयासरत है। हमारी शिक्षा के द्वारा मन, बुद्धि का विकास हो, उच्च विचारों का समावेश हो, इस हेतु संस्थान अनेक गतिविधियां करता रहता है। हम संस्कृति की परिपूर्णता को प्रत्यक्ष देखते हैं, उसमें प्रतिभागी होते हैं, ऐसा कार्यक्रम देश में कहीं न कहीं होता है, इस बार इसे कुरुक्षेत्र में होने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. प्रीतम सिंह ने कहा कि संस्कृति शिक्षा संस्थान संस्कृति को सहेजने का कार्य कर रहा है और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए दिन-रात लगा हुआ है। यहां संस्कृति को बचाने का, इसके संवर्द्ध न का कार्य सतत् चलता रहता है। इस अवसर पर हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष प्रशांत भारद्वाज, यू.आई.ई.टी. के निदेशक डॉ. सी.सी. त्रिपाठी, डॉ. हुकम सिंह, डॉ. लालचंद गुप्त ‘मंगल’, अजय तिवारी सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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