आगरा में प्रशासन की मिलीभगत से चल रही फर्जी अस्पतालों की मंडी रोज़ नई जिंदगियों से कर रही खिलवाड़

वैन (ब्रज किशोर शर्मा - आगरा, उत्तर प्रदेश) :: ताजनगरी आगरा में फर्जी अस्पतालों का मकड़जाल फैलता जा रहा है। बिना मानक और पंजीकरण के संचालित दर्जनों अस्पताल मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। अकेले यमुनापार क्षेत्र की बात की जाए तो यहां दो दर्जन से ज्यादा अस्पताल या तो बिना पंजीकरण के चल रहे हैं या पंजीकरण किसी के नाम और चला कोई और रहा है। यही कारण है कि ये फर्जी अस्पताल आये दिन किसी ना किसी मरीज की जान लेकर अपनी झोली भर रहे हैं।

आगरा में भी अन्य शहरों जैसे हालात हैं। यंहा भी अनिगिनत अवैध अस्पताल बिना रजिस्ट्रेशन और मानकों के चल रहे हैं। यहां अस्पताल चिकित्सा मानकों तक को पूरा नहीं करते। कई अस्पतालों का पंजीकरण तक नहीं हुआ है, उसके बाद भी वो अस्पताल मरीजों को अच्छी चिकित्सा के नाम पर लूटने में लगे हैं।

सीएमओ कार्यालय के आंकड़ों के मुताबिक आगरा में 500 से 600 अस्पताल रजिस्टर्ड हैं और कुछ ने पंजीकरण के लिए आवेदन कर रखा है। लेकिन देखा जाए तो आगरा में 2,000 से अधिक अस्पताल संचालित हो रहे हैं। अब ऐसे ही आप ही अंदाजा लगा लीजिये कि शहर में कितने अस्पताल मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ करते होंगे? आगरा के आरटीआई एक्टिविस्ट सबी जाफरी की सुनी जाए तो इन अस्पतालों के मकड़जाल का मलबा दिन-प्रतिदिन क्षेत्रवासियों की जीभें खाली करने के लिए फैलता जा रहा है।

आगरा में शायद ही कोई दिन हो जब किसी फर्जी अस्पताल में किसी मरीज की जान ना जाती हो। ऐसे में आगरा सीएमओ कहते हैं कि हाल ही में उन्होंने कई अस्पतालों पर सीलिंग तक की कार्रवाई की है जो बिना मानकों के चल रहे थे। कोई भी अगर ऐसे अस्पतालों की शिकायत उन तक पहुंचाएगा तो उसकी शिकायत को गंभीरता से लेकर तुरंत कार्रवाई की जायेगी।

ज्यादतर अवैध अस्पतालों का जाल यमुनापार आगरा कानपुर रोड पर फैला हुआ है। यहां अस्पताल और स्वास्थ्य विभाग की टीम कभी-कभी छापेमारी करती है और फिर कार्रवाई ठंडे बस्ते में चली जाती है। क्योंकि इन हॉस्पिटल के मालिकों के सम्बन्ध सीधे स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों तक हैं। यही वजह है कि रजिस्ट्रेशन ना होने के बावजूद इन अस्पतालों पर कभी कोई सख्ती नहीं की जाती। मानकों के अनुसार एक अस्पताल खोलने के लिए अस्पताल में इमरजेंसी सेवा, एंबुलेंस, आईसीयू, एनआईसीयू, बर्न यूनिट, ओपीडी जैसी सुविधाएं होनी चाहिए। इसके साथ अपशिष्ट निस्तारण व प्रदूषण रहित होने के साथ-साथ फायर एनओसी भी होना चाहिए। अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ का शपथ पत्र रजिस्ट्रेशन के दौरान देना होता है। लेकिन ऐसा कोई भी नहीं करता और बिना मानक के धड़ल्ले से यह अस्पताल दौड़ते रहते हैं। एक कमरे के अंदर भी अस्पताल खोल दिया जाता है। इसकी वजह है कि अस्पताल खोलने के लिए कितनी जमीन होनी चाहिए इसका कोई निर्धारण नहीं है। यही कारण है कि छोटे-छोटे घरों पर एक कमरे में पूरा अस्पताल समाहित हो जाता है और सीएमओ साहब आंख बंद रखते हैं।

सवाल बड़ा और जान को जोखिम से निकालने वाला है कि सब कुछ जानते हुए भी स्वास्थ्य विभाग ऐसे अस्पतालों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है? क्या यह अस्पताल किसी ना किसी सरकारी बाबू या नेता के हैं? क्या इन अस्पतालों से सीधा फायदा अधिकारीयों की जेभें भरता है? क्या अब यही अस्पताल अधिकारीयों का घर चला रहे हैं? क्या इन अस्पतालों पर आंच आने से अधिकारीयों की नौकरी जा सकती है? और भी ना जाने कितने सवाल इन भ्रष्ट अधिकारीयों और इन अस्पतालों के नाजायज मालिकों पर खड़े होते हैं जो नित नई जिंदगी के साथ खिलवाड़ करने से भी परहेज नहीं करते।

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