सुनसान हैं गलियां, आंगन है गुलज़ार

वैन (पटना - बिहार ब्‍यूरो) :: हिन्दी साहित्य की लेखिका सुजाता प्रसाद ने कहा कि लाँकडाउन वन के बाद लॉकडाउन टू, हमारी इंतजार की घड़ियों को और बढ़ा गया। हम सब इंतजार में थे एक अच्छी खबर के आने का, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पर हमारी भलाई भी इसी में निहित है। दुश्मन बड़ा है और हमारी लड़ाई लंबी। जीत जाएंगे हम, हम अगर संग हैं। हमारा दृढ़ संकल्प ही इस अदृश्य विषाणु के विरुद्ध अपनी मूक आवाज उठा सकता है। हमारा एक दूसरे से न मिलना ही कोरोना की कड़ी को कमजोर कर सकता है और हमें और हमारे देश को सुरक्षित रख सकता है। अभी ख़तरों के खिलाड़ी बनने के बजाय ख़तरों के सिपाही बने रहने की ही आवश्यकता है। अपनी अपनी जिम्मेदारियों का पालन करना ही अमोघ अस्त्र साबित हो सकता है।

सारा विश्व जहां हमारे देश के कोरोना मरीजों और उससे हुई मौत के आंकड़ों पर आश्चर्य कर रहा है। डब्ल्यू एच ओ भारत के कॉलम में कोरोना की लड़ाई और उस पर नियंत्रण के मद्देनजर जहां सौ प्रतिशत नतीजा दिखा रहा है वहीं कुछ अपने लोग ही हमें कमजोर करने में जुटे हुए हैं। चाहे यह दिल्ली में हुए एक धार्मिक कार्यक्रम का खुलासा हो, जिसके होने मात्र से कोरोना पॉजिटिव लोगों की संख्या दुगुनी गति से बढ़ गई। या फिर अफवाहों के मारे मजदूरों का सामूहिक पलायन, जिनके एक जगह एकत्रित होने से आशंका के बादल छा गए। और तो और देवदूत डॉक्टर्स और मेडिकल टीम पर हो रहे हमलों से और कर्मवीर पुलिस तथा सफाई कर्मचारियों को लहूलुहान करने की घटनाओं से तो मायूसी ही छा गई। जैसा पहले भी होता आया है आज़ भी हो रहा है। कुछ अपनों के साथ नहीं देने से ऐसा लग रहा है कि हम जीती बाजी हारने लगे हैं, लेकिन बाकी देशवासियों का हौसला भी कुछ कम नहीं है। कोरोना से जुड़ी हर एडवाइजरी का अनुपालन कर रहे हैं ताकि कोरोना संक्रमण की संख्या में कमी आ पाए।

बेशक हमारी सड़कें हमारी गलियां सुनसान हो गईं हैं, लेकिन देश वीरान नहीं हुआ है। हर घर अपने आंगन में गुलज़ार है। देश के लोग सतर्क हैं और सुरक्षित रहने की पूरी कोशिश में लगे हुए हैं। अपनी इस युद्ध बेला में वर्तमान समय हमारे आपके जैसा कर्मयोद्धा मांग रहा है, तभी हमारा आने वाला समय गुनगुनाएगा चलो चलें पूजन करने को मंगल बेला आई। मिली है जो सामूहिक क़ैद उसको आजादी से जीने का हमारा प्रयास ही हमें तनावमुक्त रख सकता है। अपने बड़े बुजुर्गो की देखभाल और बच्चों के साथ रहकर समय का सदुपयोग करना ही हमारे लिए कारगर होगा जिससे हम चिंतामुक्त भी हो सकते हैं। आर्थिक परिस्थितियां जरूर विषम हो जाएंगी पर, नई सुबह फिर आएगी यही उम्मीद हमें सकारात्मक और स्वस्थ रख सकने में मददगार साबित हो सकती है। इस परेशानी की घड़ी में हमारी इच्छाशक्ति हमें अंदरूनी मजबूती देगी।

बसंत के इस मौसम में कोरोना का कहर है और हम अपने अपने घरों में बंद। इस समय प्रकृति पर एक नजर दौड़ाएं तो हम पाएंगे कि बसंत आते आते आम के पेड़ में बौर लग जाते हैं। पत्तों के मध्य अपनी उपस्थिति में सुगंध बिखेरते रहते हैं। फिर धीरे धीरे ये मनमोहक फूल छोटे छोटे अमियों में तब्दील हो जाते हैं। समय बीतता है। आने वाले दिनों में मौसम के अनुसार तेज़ हवाएं चलती हैं तो इसी बीच कभी बारिश भी हो जाती है। ऐसे में जिन आमों में शाखाओं से बंधे रहने की मजबूती नहीं होती है, वे गिर जाते हैं और जो आम इस बारिश में बच जाते हैं वही पक पाते हैं। कुछ ऐसी ही इंसानी जीवन की प्रकृति भी है। तय हमें करना है, हमें गिरना है या बचना है। कोविड 19 के आगमन पर खुद का बचाव करने की शक्ति ही हमें सुरक्षित रख सकती है। ठीक ही तो है एक फल को तब गिरना चाहिए जब वो पक गया हो। और ऐसा ही इंसानों के साथ भी होना चाहिए। आधी दूरी में साथ छोड़ देना हमारे अधूरेपन की बानगी कहलाएगी। चाहे वो हमारे चिंताग्रस्त होने से हो,चाहे वो किसी बीमारी से पीड़ित होने की स्थिति से हो, या फिर किसी वायरस से संक्रमित हो जाने के डर या अवसादग्रस्त हो जाने से हो। जरूरत है अपनी संरक्षित ऊर्जा को सही दिशा देने की। अपनी अपनी शाखाओं से मजबूती से जुड़े रहने की। जरूरत है आने वाले दिनों के लिए अपने इम्यून सिस्टम को मजबूत करने की और कोरोना चेन को ब्रेक करने की। जरूरत है एक दूसरे का साथ देकर अपने भारत को बचाने की।

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