मिट्टी का दीपक तो पंच तत्वों का प्रतीक है - सुजाता प्रसाद

वैन (रामा शंकर प्रसाद - पटना, बिहार) :: बिहार की जानीमानी कावियत्री सुजाता प्रसाद ने कहा कि प्रकाश का सीधा संबंध जीवन से है। सबसे जीवंत और प्रामणिक उदाहरण सूर्य है। अगर प्रकाश स्रोत सूर्य नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन नहीं होता। इसलिए कह सकते हैं दीप प्रज्वलन की परंपरा आशा, विश्वास और जीवन स्फुरण से ही संबंधित है। इसका विरोध तो स्वयं से परस्पर विरोध ही लगता है। धर्म ग्रंथों में दीपक का बहुत महत्व बताया गया है। उपनिषद और पुराणों के अनुसार मुश्किल की घड़ी में नई उम्मीद और हिम्मत का संदेश देता है प्रज्ज्वलित दीपक। तमसो मा ज्योतिर्गमय अर्थात् मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। इस श्लोक में भी दीप प्रज्वलित करने की महिमा बताई गई है। इसलिए दीपक की रोशनी को ज्ञान का प्रतीक माना गया है। एक छोटे से दीपक का प्रकाश भी हमारा मार्गदर्शन करने में सक्षम होता है। भगवान बुद्ध की शिक्षा भी इसी दीप को प्रतीक मान कर दी गई है "अप्पो दीप भव"।

दीपों की रोशनी करने की परंपरा तो प्राचीन और वैज्ञानिक है। जिसे हमारे पर्व त्योहारों, आनंद उत्सवों से भी जोड़ दिया गया। जब चारों ओर तरफ़ अंधकार का साम्राज्य हो गया हो तब दीपों को प्रज्ज्वलित करने से हमारा मन हर्षित होता है। शायद इसीलिए भी हमारे नित प्रति प्रार्थना पूजा का हिस्सा बना दीप। दीपों का जलाया जाना बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसका प्रकाश कई प्रकार के कीड़े मकोड़े और बैक्टिरिया का शमन करने वाला होता है। इससे कई बीमारियों का नाश भी होता है। हम इसके अदृश्य प्रभाव से भले ही अनभिज्ञ हों, लेकिन यह अपनी क्षमता से हमारे मन में और हमारे चारों तरफ एक सकारात्मक प्रभाव डालता है। पुराणों में दीपक को सकारात्मकता का प्रतीक व दरिद्रता का निवारण करने वाला भी कहा गया है।

हमने यह भी देखा होगा कि भय और चिंता के माहौल में जब मन हताशा और निराशा के भाव से घिर जाता है तब भी यह प्रकाश स्रोत आशा की किरण जगा जाता है। अखंड दीप जलाने की परंपरा भी इसी कारण भी अपनाई जाती है। योगी महापुरुषों के अनुसार घर में एक प्रज्ज्वलित दीप न सिर्फ हमें प्रसन्न रखता है बल्कि कई रोगों से मुक्त भी करता है। इतना ही नहीं आने वाले समय में हमें सुरक्षित भी रखता है। वैदिककाल से ही दीपक जलाने की परंपरा है। ऋग्वेद काल से अग्नि प्रज्वलित करने की परंपरा मनाई जाती है। कहते हैं, त्रेतायुग में श्रीराम के अयोध्या लौटने पर और द्वापरयुग में श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर राक्षस का वध करने पर दीपक जलाए गए थे। किंवदंती के अनुसार इसके बाद कलयुग में दीपावली पर्व के दौरान सुख-समद्धि की कामना और उल्लास प्रकट करने के लिए पांच दिनों तक दीपक जलाए जाते हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से दीपक का इतिहास करीब 5000 साल पुराना है। इस प्रकार ऋग्वेदकाल से कलयुग तक सनातन धर्म में दीपक का बहुत महत्व बताया गया है। मिट्टी का दीपक तो पंच तत्वों का प्रतीक है और सकारात्मक ऊर्जा के संचार के लिए दीप जलाने की परंपरा चली आ रही है जो हमारे जीवन का अभिन्न अंग है।

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